बहुत से लोग मेरे पास आते हैं और मुझसे कहते हैं कि वे दु:खी हैं, और वे चाहते हैं कि मैं उन्हें कोई ध्यान बताऊं। मैं कहता हूं: मौलिक बात यह समझने की है कि तुम दु:खी क्यों हो? और यदि तुम दु:ख के उन मौलिक कारणों को नहीं हटाते, तो मैं तुम्हें ध्यान तो दे दूंगा लेकिन वह तुम्हारी अधिक मदद न कर पाएगा। क्योंकि मौलिक कारण तो वहीं हैं।

संभव है एक व्यक्ति अच्छा नर्तक हो, एक सुंदर नर्तक, लेकिन वह ऑफिस में बैठा फाईलें जमा रहा है। नृत्य की कोई संभावना नहीं। संभव है एक व्यक्ति नें सितारों के नीचे नृत्य का आनंद लिया हो, लेकिन वह बैंक का खाता भर रहा है। और वह कहता है कि वह दु:खी है। मुझे कोई ध्यान दीजिये...मैं दे सकता हूं! लेकिन वह ध्यान क्या करेगा? उस ध्यान से क्या अपेक्षा की जा सकती है? वह व्यक्ति वही रहेगा: धन जमा करने वाला, बाज़ार में प्रतियोगिता करता हुआ। ध्यान इस प्रकार उसकी सहायता कर सकता है: वह उसे और विश्रांत कर दे और वह इस मूढ़ता को और बेहतर ढंग से कर पाये।

भावातीत ध्यान पश्चिम में यही कर रहा है लोगों के साथ। इसीलिये भावातीत ध्यान का इतना आकर्षण है, क्योंकि महेश योगी कहे चले जाते हैं,' यह तुम्हें कार्य कुशल बनायेगा, यह तुम्हें और सफल बनायेगा। यदि तुम सेल्ज़मैन हो तो यह तुम्हें और अधिक सफल सेल्ज़मैन बनायेगा। यह तुम्हें कार्यकुशलता देगा।' और अमेरिकन लोग कार्यकुशलता को लेकर लगभग पागल हैं। कार्यकुशल होने के लिये वे कुछ भी गंवा सकते हैं। यही कारण है आकर्षण का।

निश्चित ही यह आपकी सहायता कर सकता है। यह आपको थोड़ा विश्रांत कर सकता है। यह ट्रैंक्विलाइज़र है। किसी मंत्र का लगातार उच्चारण करने से, किसी शब्द का लगातार उच्चारण करने से मस्तिष्क का रसायन बदल जाता है। यह ट्रैंक्विलाइज़र है, एक ध्वनि-ट्रैंक्विलाइज़र।यह आपका तनाव कम करने में सहायक होती है ताकि कल आप मार्किट में अधिक कार्यकुशल हो सकें, प्रतियोगिता के लिये और सक्षम। लेकिन इससे तुममें रूपांतरण नहीं होता। यह रूपांतरण नहीं है।

तुम किसी मंत्र को दोहरा सकते हो, तुम कोई भावातीत ध्यान कर सकते हो; यह यहां वहां तुम्हारी थोड़ी बहुत सहायता कर सकता है लेकिन यह तुम्हें वैसा ही रहने में सहायता करता है।

इसलिये मैं केवल उन्हें आकर्षित करता हूं जो सचमुच साहसी हैं, दु:साहसी हैं और अपनी जीवन शैली को बदलने में उत्सुक हैं। क्योंकि तुम्हारे पास गंवाने को कुछ भी नहीं है: केवल तुम्हारी व्यथा, तुम्हारे दु:ख। लेकिन लोग उससे भी चिपके हैं।

और तुम्हारे पास गंवाने को है भी क्या? केवल दु:ख। इसकी चर्चा करना ही तुम्हारा एकमात्र आनंद है। लोगों को अपने दु:ख की चर्चा करते देखो; कितने प्रसन्न हो जाते हैं वे! इसके लिये वे पैसे देते हैं: वे मनोचिकित्सक के पास जाते हैं अपने दु:ख के बारे में चर्चा करने। इसके लिये वे पैसे देते हैं। कोई ध्यान से उनको सुनता है; वे बहुत प्रसन्न होते हैं। लोग बार-बार अपने दु:ख की चर्चा करते हैं, बार- बार। वे इसे बढ़ा -चढ़ा कर बताते हैं, इसे सजाते सवांरते हैं, इसे बढ़ाकर बताते हैं। लेकिन लोग ज्ञात से, जाने पहचाने से चिपके रहना चाहते हैं। केवल दु:ख ही है जो उन्होंने जाना है। वही उनका जीवन है। खोने को कुछ भी नहीं, लेकिन फिर भी कुछ भी गंवाने से भयभीत।

मेरे साथ प्रसन्नता पहले आती है, आनंद पहले आता है। उत्सव मनाने वाला चित्त पहले आता है। जीवन को विधायक दृष्टि से देखने वाला दर्शन पहले आता है! आनंदित होओ! यदि तुम अपने कार्य में आनंदित नहीं हो रहे तो इसे बदल डालो। प्रतीक्षा मत करो, क्योंकि तुम्हारी सारी प्रतीक्षा किसी काल्पनिक परमात्मा की प्रतीक्षा है जो कभी आता नहीं। व्यक्ति बस प्रतीक्षा करते- करते जीवन गंवा देता है। तुम किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो, किसकी? यदि तुम्हें दिखायी देता है कि किसी विशेष प्रकार की जीवन शैली में तुम्हें दु:ख मिलता है तो सब परंपरायें कह्ती हैं: तुम गलत हो। मैं तुमसे कहना चाहूंगा: वह शैली ही गलत है। यह समझने का प्रयास करो कि ज़ोर किस बात पर है।

तुम गलत नहीं हो! केवल जीवन शैली, वह जीने का ढ़ंग जो तुमने सीखा है, गलत है। वह प्रयोजन जो तुमने सीखे हैं और स्वीकार कर लिये हैं कि तुम्हारे हैं, वास्तव में तुम्हारे नहीं हैं। वे तुम्हारी नियति को परिपूर्ण नहीं करते। वे तुम्हारी प्रकृति के विरोध में हैं, तुम्हारे मौलिक तत्व के विरोध में है...

स्मरण रहे: कोई दूसरा तुम्हारे लिये निर्णय नहीं ले सकता। अपना जीवन तुम्हें अपनए हाथों में लेना होगा। अन्यथा जीवन तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता रहता है और तुम वहां कभी होते ही नहीं; तुम सदा कहीं और ही होते हो।

यदि तुम्हें नर्तक होना है तो जीवन उस द्वार से आता है क्योंकि जीवन सोचता है कि अब तक तुम नर्तक हो चुके होओगे। वह वहां दस्तक देता है लेकिन तुम वहां हो ही नहीं। तुम एक बैंक कर्मचारी हो। अब जीवन कैसे जाने कि तुम बैंक कर्मचारी बनोगे? परमात्मा उस मार्ग से आता है जैसा उसने चाहा था तुम होओगे; उसे वही पता मालूम है- लेकिन तुम वहां कभी मिलते ही नहीं, तुम कहीं और होते हो, किसी और के मुखौटे के पीछे, किसी और की नकाब में, किसी और का नाम लिये।

परमात्मा तुम्हें केवल एक ही ढंग से जान सकता है, एक ही ढंग है उसके पास तुम्हें जानने का, और वह है तुम्हारी आंतरिक खिलावट, जैसी कि उसने चाही थी। जब तक कि तुम अपनी सहजता न पा लो, ज्ब तक कि तुम अपना मौलिक तत्व न जान लो, तुम आनंदित नहीं हो सकते। और जब जब तक तुम आनंदित नहीं, तुम ध्यान में नहीं उतर सकते।

लोगों के मन में यह विचार क्यों उठता है कि ध्यान आनंद लाता है? वास्तव में जहां भी उन्होने कोई आनंदित व्यक्ति देखा, वहीं उन्हे सदा एक ध्यान करने वाला मन मिला। वे इसके साथ सम्बद्ध हो जाते हैं। जब भी उन्होंने किसी व्यक्ति के आस-पास सुंदर, ध्यान का वातावरण देखा, उन्होने पाया कि वह व्यक्ति अत्यंत आनंदित था, आनंद से ओत-प्रोत, उल्लसित। वह उसके साथ सम्बद्ध हो गये। उन्होने सोचा जब आप ध्यान करते हैं तो आनंद आता है ।

बात इसके विपरीत है: ध्यान घटता है जब आप आनंदित होते हैं। लेकिन आनंदित होना कठिन है और ध्यान सीखना आसान है। आनंदित होने का अर्थ है एक अप्रत्याशित बदलाहट, एक अनपेक्षित बदलाहट, क्योंकि समय नहीं है गंवाने को। एक आकस्मिक बदलाहट, बिजली की एक आकस्मिक कड़क...एक विच्छिन्नता।

संन्यास से मेरा यही अभिप्राय है: अतीत से एक विच्छिन्नता। बिजली की एक आकस्मिक गर्जन- तुम अतीत के लिये मर जाते हो और पुन: जीना प्रारंभ करते हो, अ ब स से। तुम्हारा पुनर्जन्म होता है। तुम पुन: अपना जीवन प्रारंभ करते हो जैसा तुमने किया होता यदि मां-बाप, समाज या शासन द्वारा दिया गया कोई ढांचा तुमपर थोपा न गया होता; जैसा तुमने किया होता, तुम अवश्य करते, यदि तुम्हें टोकने के लिये कोई न होता। लेकिन तुम्हें टोका गया। तुम्हें वे सब ढांचे गिराने होंगे जो तुम पर थोप दिये गये हैं, और तुम्हें अपनी आंतरिक ज्योति खोजनी होगी।
 

ओशो: ए सडन क्लैश ऑव थंडर