समस्यायें तुम्हारे चारों ओर हैं। तो यदि तुम किसी तरह एक समस्या से छुटकारा पा भी लो तो दूसरी पैदा हो जाएगी। और समस्याओं को पैदा होने से तुम रोक न सकोगे। समस्याएं पैदा होती ही रहेंगी जब तक तुममें साक्षी की गहन समझ न आ जाये। यही एक सुनहरी कुंजी है जो सदियों से पूर्व में हुई आंतरिक खोज में पायी गयी है: कि समस्या का समाधान खोजने की कोई आवश्यकता नहीं। तुम बस इसे देखो, और मात्र देखना ही काफी है; समस्या तिरोहित हो जाती है।
 

ओशो: द रिबैलियस स्पिरिट, #6

 

यदि तुम स्पष्ट हो, यदि तुम देख सकते हो, तो तुम्हारे जीवन की समस्यायें तिरोहित हो जाती हैं। तिरोहित शब्द का प्रयोग करने के बारे में मैं तुम्हें दोबारा चेता दूं। मैं यह नहीं कह रहा कि तुम उत्तर खोज लो, अपनी समस्याओं के समाधान खोज लो, नहीं। और मैं केवल जीवन की समस्याओं की बात कर रहा हूं।

जीवन की समस्याओं के बारे में समझने के लिये यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात है: वे तुम्हारी अस्पष्ट दृष्टि के कारण पैदा होती हैं। तो ऐसा नहीं कि तुम पहले उन्हें स्पष्ट देखो तब तुम्हें समाधान मिलेगा और फिर तुम उस समाधन का प्रयोग करो। नहीं, प्रक्रिया इतनी लंबी नहीं है, प्रक्रिया बहुत साधारण और छोटी है। जिस क्षण तुम अपने जीवन की समस्या को स्पष्ट देखते हो, वह तिरोहित हो जाती हैं।

ऐसा नहीं है कि तुमने उत्तर पा लिया है और अब तुम इसका प्रयोग करोगे, और किसी दिन तुम इसे मिटाने में सफल हो जाओगे। समस्या तुम्हारी अस्पष्ट दृष्टि के कारण थी। तुमने ही इसे पैदा किया था। पुन: स्मरण रहे, मैं जीवन की समस्याओं की बात कर रहा हूं। मैं यह नहीं कह रहा कि यदि तुम्हारी कार खराब हो जाये तो तुम शांत बैठ जाओ और स्पष्ट देखो कि समस्या क्या है: समस्या साफ है, अब कुछ करो! बात यह नहीं है कि तुम बस पेड़ के नीचे बैठ कर ध्यान करो और क्भी-कभी बीच में आँख खोलकर देखो कि समस्या का हल हुआ कि नहीं।

यह जीवन की समस्या नहीं है, यह मशीन की समस्या है। यदि तुम्हारा टायर पंक्चर हुआ है तो तुम्हें पहिया बदलना होगा। बैठना इसका हल नहीं है; तुम उठो और पहिया बदलो। इसका तुम्हारे मस्तिष्क और तुम्हारी स्पष्टता से कुछ लेना-देना नहीं; इसका सड़क से कुछ लेना- देना नहीं। तुम्हारी स्पष्टता सड़क के साथ क्या कर सकती है?अन्यथा यहां बैठे तीन हजार साधक एक सड़क ठीक नहीं कर सकते। फिर तो बस ध्यान बहुत था!

लेकिन प्रश्न केवल जीवन की समस्याओं का है। उदाहरण के लिये, तुम्हें ईर्ष्या हो रही है, क्रोध आ रहा है,या फिर अर्थहीनता का आभास हो रहा है। तुम किसी प्रकार अपने को ढो रहे हो। तुम्हें लगता है कि जीवन में अब कोई रस नहीं रहा। तो ये जीवन की समस्याएं हैं और मन की अस्पष्टता के कारण पैदा हुई हैं। क्योंकि अस्पष्टता उनका स्रोत है, स्पष्टता उन्हें तिरोहित कर देती है। यदि तुम स्पष्ट हो, यदि तुम साफ देख सकते हो तो समस्या तिरोहित हो जाएगी।

इसके अतिरिक्त तुम्हें कुछ नहीं करना है। बस देखना, इसकी सारी प्रक्रिया का साक्षी होना: कैसे समस्या पैदा होती है, कैसे यह तुम्हें ग्रसित करती है, कैसे इसके द्वारा तुम्हारी दृष्टि पूर्णतया धुंधली हो जाती है, कैसे तुम अंधे हो जाते हो; और कैसे तुम पागलों जैसा व्यवहार करने लगते हो, जिसके लिये बाद में तुम्हें पश्चाताप होता है... बाद में तुम्हेंबोध होता है कि यह निपट पागलपन था, कि' मैने यह अपने बावजूद किया, मैं इसे कभी करना नहीं चाहता था, फिर भी किया। और जब मैं कर रहा था तब भी मैं जानता था कि मैं करना नहीं चाहता था।' लेकिन यह ऐसा था मानो तुम आविष्ट हो गये थे...

 

ओशो: फ्रॉम मिज़री टु इनलाइटनमैंट,