आप जो ध्यान सिखाते हैं, वह पतंजलि के राजयोग से किस प्रकार भिन्न है? -

जैसे मैं पतंजलि से भिन्न हूं, ऐसे ही। जिस ध्यान की मैं बात कर रहा हूं, कहना चाहिए, वह मेरा ही है। लेकिन मेरे का ‘मैं’ से कोई लेना-देना नहीं है। मेरा सिर्फ इस अर्थ में कि मैं किसी दूसरे को प्रमाण बना कर कुछ भी कहूं, तो वह भरोसे की बात नहीं। मेरा इसी अर्थ में कि जो भी मैं कह रहा हूं वह अनुभव है, विचार नहीं है। जो भी मैं कह रहा हूं वह किसी शास्त्र से संगृहीत नहीं है, स्वयं से जाना हुआ है।

क्या ध्यान करते हुए मुझे अपनी आँखें बंद रखनी आवश्यक हैं? -

सभी नहीं, लेकिन अधिकतर तकनीकों तथा किसी विशेष तकनीक के संपूर्ण चरणों में यह अपेक्षित है कि आप अपनी आँखें बंद रखें। जबकि अन्य कुछ में अपेक्षित है कि आप अपनी आँखें खुली रखें; जबकि कुछ में चुनाव आप पर छोड़ा जाता है।

आँखें बंद करने से अंतर्यात्रा कैसे सुलभ होती है इसके बारे में ओशो का बोध नीचे दिया गया है।

क्या ध्यान का धर्म से कुछ लेना-देना है? -

मैंने सारे धार्मिक अर्थों को मिटा दिया है - एक हिंदू हिंदू रह सकता है और फिर भी ध्यान कर सकता है - ताकि ध्यान बिना किसी शर्त सभी को उपलब्ध हो सके, चाहे वह हिंदू हो, यहूदी हो या ईसाई हो... कोई भी इसमें भाग ले सकता है।

इसका सौन्दर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति ध्यान करता है तो आज नहीं कल, उसका हिंदुत्व तिरोहित हो जाएगा। यह ध्यान के साथ उपस्थित नहीं रह सकता। अत: हिंदुत्व की चिंता क्यों करते हो जब हमारे पास एक रहस्य है जो हमारे मन के सभी अंधेरों को स्वत: मिटा देगा।

क्रोध का सृजनात्मक उपयोग कैसे करें ।

क्रोध तो केवल एक उदाहरण के लिए लिया था—सारे भावावेग शक्तियां हैं। और अगर उन शक्तियों का कोई सृजनात्मक उपयोग न हो, तो वे शरीर के किसी अंग को, चित्त की किसी स्थिति को विकृत करके अपनी शक्ति को व्यय कर लेते हैं। शक्ति का व्यय होना जरूरी है। जो शक्ति बिना व्यय की हुई भीतर रह जाएगी, वह ग्रंथि बन जाएगी। ग्रंथि का मतलब, वह गांठ बन जाएगी, वह बीमारी बन जाएगी।

क्या ध्यान में कोई खतरा तो नहीं है?

क्या ध्यान में कोई खतरा तो नहीं है?

ओशो

ध्यान सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि ध्यान सबसे गहरे जीवन की उपलब्धि में ले जाने का द्वार है।

नहीं, वे मित्र पूछते हैं कि खतरा है तो जाएं ही क्यों? मैं कहता हूं, खतरा है इसलिए ही जाएं। खतरा न होता तो जाने की बहुत जरूरत न थी। जहां खतरा न हो वहां जाना ही मत, क्योंकि वहां सिवाय मौत के और कुछ भी नहीं है। जहां खतरा हो वहां जरूर जाना, क्योंकि वहां जीवन की संभावना है।

क्या धर्म एक विज्ञान है?

मेरे लिए धर्म परम विज्ञान है, सुप्रीम साइंस है। इसलिए मैं नहीं कहूंगा कि धर्म का कोई भी आधार फेथ पर है। कोई आधार धर्म का फेथ पर नहीं है। धर्म का सब आधार नॉलेज पर है।

मन चंचल है और बिना अभ्यास और वैराग्य के वह कैसे थिर होगा?

यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। और जिस ध्यान की साधना के लिए हम यहां इकट्ठे हुए हैं, उस साधना को समझने में भी बहुत सहयोगी होगा। इसलिए मैं थोड़ी सूक्ष्मता से इस संबंध में बात करना चाहूंगा।

ध्यान से स्वास्थ्य का क्या संबंध है?

ध्यान से स्वास्थ्य का क्या संबंध है?

ओशो

बहुत संबंध है। क्योंकि बीमारी का बहुत बड़ा हिस्सा मन से मिलता है। गहरे में तो बीमारी का नब्बे प्रतिशत हिस्सा मन से ही आता है। ध्यान मन को स्वस्थ करता है। इसलिए बीमारी की बहुत बुनियादी वजह गिर जाती है।

यह जो ध्यान की प्रक्रिया है, इससे शरीर पर सीधा भी प्रभाव होता है। क्योंकि दस मिनट की तीव्र श्वास, आपकी जीवन ऊर्जा को, वाइटल एनर्जी को बढ़ाती है। सारा जीवन श्वास का खेल है। जीवन का सारा अस्तित्व श्वास पर निर्भर है। श्वास है तो जीवन है।

निर्विचार कैसे हुआ जाए?

निर्विचार कैसे हुआ जाए?

ओशो

जिसे निर्विचार होना हो, उसे व्यर्थ के विचारों को लेना बंद कर देना चाहिए । उसे व्यर्थ के विचारों को लेना बंद कर देना चाहिए। इसकी सजगता उसके भीतर होनी चाहिए कि वह व्यर्थ के विचारों का पोषण न करे, उन्हें अंगीकार न करे, उन्हें स्वीकार न करे और सचेत रहे कि मेरे भीतर विचार इकट्ठे न हो जाएं। इसे करने के लिए जरूरी होगा कि वह विचारों में जितना भी रस हो, उसको छोड़ दे।

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