यदि घर पर इसे हम जारी रखेंगे, तो आस-पास के लोग पागल समझने लगेंगे

यदि घर पर इसे हम जारी रखेंगे, तो आस-पास के लोग पागल समझने लगेंगे

ओशो

आस-पास के लोग अभी भी पागल ही समझते हैं एक-दूसरे को। कहते न होंगे, यह दूसरी बात है। यह पूरी जमीन करीब-करीब मैड हाउस है, पागलखाना है। अपने को छोड़ कर बाकी सभी लोगों को लोग पागल समझते ही हैं। लेकिन अगर आपने हिम्मत दिखाई और इस प्रयोग को किया, तो आपके पागल होने की संभावना रोज-रोज कम होती चली जाएगी। जो पागलपन को भीतर इकट्ठा करता है, वह कभी पागल हो सकता है। जो पागलपन को उलीच देता है, वह कभी पागल नहीं हो सकता।

क्या ध्यान केवल धर्म-जीवन के लिए ही उपयोगी है या रोज के व्यावहारिक जीवन में भी उपयोगी है?

Wमूलतः तो धर्म के लिए ही उपयोगी है। लेकिन धर्म व्यक्ति की आत्मा है। और उस आत्मा में परिवर्तन हो, तो व्यवहार अपने आप बदलता ही है। भीतर बदले, तो बाहर बदलाहट आती है। वह बदलाहट लेकिन छाया की भांति है, परिणाम की भांति है। वह पीछे चलती है। जैसे हम किसी से पूछें कि कोई आदमी दौड़े, तो आदमी ही दौड़ेगा या उसकी छाया भी दौड़ेगी? ऐसा ही यह सवाल है। आदमी दौड़ेगा तो छाया तो दौड़ेगी ही। हां, इससे उलटा नहीं हो सकता कि छाया दौड़े तो आदमी दौड़ेगा क्या? पहली तो बात छाया दौड़ नहीं सकती। और अगर दौड़े भी, तो भी आदमी के उसके पीछे दौड़ने का उपाय नहीं है।

शांति कैसे मिले?

मेरे पास न मालूम कितने लोग आते हैं। वे कहते हैं, शांत कैसे हों?
मैं उनसे पूछता हूं कि पहले तुम मुझे बताओ कि तुम अशांत कैसे हुए? क्योंकि जब तक यह पता न चल जाए कि तुम कैसे अशांत हुए, तो शांत कैसे हो सकोगे!
एक आदमी मेरे पास लाया गया। उसने कहा, मैं अरविंद आश्रम से आता हूं। शिवानंद के आश्रम गया हूं। महेश योगी के पास गया हूं। ऋषिकेश हो आया। यहां गया, वहां गया। रमण के आश्रम गया हूं। कहीं शांति नहीं मिलती। तो किसी ने आपका मुझे नाम दिया तो मैं आपके पास आया हूं।

मेरा उद्देश्य बहुत अद्वितीय है ...

'और सिर्फ यहीं नहीं, लेकिन बहुत दूर तक ...
दुनिया में कहीं भी,जहां लोग
वीडियो या ऑडियो सुन रहे होंगे,
वे उसी मौन का अनुभव करेंगे।'

मेरा उद्देश्य इतना अद्वितीय है - मैं शब्दों का उपयोग कर रहा हूं बस मौन अंतराल बनाने के लिए। शब्द महत्वपूर्ण नहीं हैं इसलिए मैं कुछ भी कह सकता हूं : विरोधाभासी, बेतुका, असंबंधित, क्योंकि मेरा उद्देश्य सिर्फ अंतराल बनाना है। शब्द गौण हैं, उन शब्दों के बीच का मौन प्राथमिक है।

ध्यान की सक्रिय विधियाँ क्यों ?

''आधुनिक मानव एक बहुत नयी घटना है । किसी भी पारम्परिक पद्धति का उपयोग हू-बहू इसी रूप में नहीं किया जा सकता जैसी वह रही है क्योंकि आधुनिक मानव का पहले कभी अस्तित्व नहीं रहा । इसलिए एक तरीके से सभी पारम्परिक पद्धतियां असम्बद्ध हो गयी हैं।

विपस्सना कैसे की जाती है?

विपस्सना मनुष्य-जाति के इतिहास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ध्यान-प्रयोग है। जितने व्यक्ति विपस्सना से बुद्धत्व को उपलब्ध हुए उतने किसी और विधि से कभी नहीं। विपस्सना अपूर्व है! विपस्सना शब्द का अर्थ होता है: देखना, लौटकर देखना। बुद्ध कहते थे: इहि पस्सिको, आओ और देखो!

ध्यान के ये प्रयोग मस्तिष्क पर तनाव डालते हैं, क्या समाधि के लिए विश्राम उचित न होगा?

बिलकुल उचित है। बिलकुल जरूरी है। असल में समाधि विश्राम में ही उपलब्ध होती है। लेकिन हममें से अधिक लोग विश्राम भूल ही गए हैं, हम सिर्फ तनाव ही जानते हैं। तो हमारे लिए विश्राम का एक ही रास्ता है कि हम पूर्ण तनाव को उपलब्ध हो जाएं, जिसके आगे और तनाव संभव न हो। उस क्लाइमेक्स पर चले जाएं टेंशन और तनाव की जिसके आगे और तनने का उपाय न रहे। बस उसके बाद अचानक आप पाएंगे कि शिथिलता आ गई और विश्राम उपलब्ध हुआ। अगर मैं इस मुट्ठी को बांधता चला जाऊं, बांधता चला जाऊं, जितनी मेरी ताकत है, तो एक जगह मैं पाऊंगा कि मुट्ठी खुल गई। जहां मेरी ताकत पूरी हो जाएगी वहीं मुट्ठी खुल जाएगी।

ध्यान आँतरिक क्राँति है ।

स्व-निरीक्षण, सेल्फ-आब्जर्वेशन क्या है?
मैं शांत बैठ जाऊं-जैसा मैंने सम्यक स्मृति के लिए कल ही समझाया है-और अपने भीतर जो भी होता है, उसे देखूं। वासनाओं, विचारों का एक जगत भीतर है। मैं उसका निरीक्षण करूं। मैं उसे ऐसे ही देखूं, जैसे कोई सागर तट पर खड़ा हो, सागर की लहरों को देखता है। कृष्णमूर्ति ने इसे निर्विकल्प सजगता, च्वाइसलेस अवेअरनेस कहा है। यह बिलकुल तटस्थ निरीक्षण है। तटस्थ होना बहुत जरूरी है। तटस्थ का अर्थ है कि मैं कोई चुनाव न करूं, न कोई निर्णय करूं। न किसी वासना को बुरा कहूं, न भला कहूं।

ध्यान के दौरान खुजली व दर्द जैसी बाधा डालने वाली भावनाओं से कैसे निबटा जाए ?

ओशो,
ध्यान में, ज्यादातर शारीरिक दर्द बाधा डालते हैं। क्या आप बताएंगे कि जब दर्द हो रहा है तब उस पर ध्यान कैसे किया जाए?
यह वही है जिसकी मैं बात कर रहा था। यदि तुम दर्द महसूस करते हो तो इसके बारे में सतर्क रहो, कुछ करो नहीं। ध्यान बहुत बड़ी तलवार है। तुम सिर्फ दर्द पर ध्यान दो।

क्या सृजनात्मकता कहीं न कहीं ध्यान से जुड़ी है?

कला को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। निन्यानबे प्रतिशत कला विषयगत कला है, केवल एक प्रतिशत ऑब्जेक्टिव या वस्तुगत है। निन्यानबे प्रतिशत विषयगत कला का ध्यान से कोई संबंध नहीं है। केवल एक प्रतिशत वस्तुगत कला ध्यान पर आधारित है।

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