क्या ध्यान मुझे आनंदित होने में सहायक होगा?

बहुत से लोग मेरे पास आते हैं और मुझसे कहते हैं कि वे दु:खी हैं, और वे चाहते हैं कि मैं उन्हें कोई ध्यान बताऊं। मैं कहता हूं: मौलिक बात यह समझने की है कि तुम दु:खी क्यों हो? और यदि तुम दु:ख के उन मौलिक कारणों को नहीं हटाते, तो मैं तुम्हें ध्यान तो दे दूंगा लेकिन वह तुम्हारी अधिक मदद न कर पाएगा। क्योंकि मौलिक कारण तो वहीं हैं।

मैं क्यों बोलता हूं ?

बोलने के लिए शब्द के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है—साधारणतः। शब्द से ही बोला जाएगा। और फिर भी यह सत्य है कि शब्द से बोला नहीं जा सकता। ये दोनों बातें ही सत्य हैं। शब्द से ही बोला जाएगा, यह हमारी परिस्थिति है। यानी जिस सिचुएशन में आदमी है उसमें शब्द के अतिरिक्त और संवाद का कोई उपाय नहीं है। या तो हम आदमी की परिस्थिति बदलें। तो सिर्फ गहरे साधकों से बिना शब्द के बोला जा सकता है। लेकिन गहरी साधना में उनको ले जाने के पहले भी शब्दों का उपयोग करना पड़ेगा। एक घड़ी आ सकती है बहुत बाद में कि बिना शब्द के बोला जा सके। लेकिन वह घड़ी आएगी बहुत बाद में, वह है नहीं। जब तक वह घड़ी नहीं है तब तक शब्द से ही बोलन

विकास का वह कौन सा बिंदु है जहां रेचन छोड़ा जा सकता है?

वह स्वयं ही छूट जाता है जब वह समाप्त हो जाता है। तुम्हें उसको छोड़ने की जरूरत नहीं होती। धीरे-धीरे तुम अनुभव करोगे कि उसमें कोई ऊर्जा नहीं रही। धीरे-धीरे तुम अनुभव करोगे कि तुम रेचन कर रहे हो, लेकिन वे रिक्त चेष्टाएं हैं, ऊर्जा मौजूद नहीं है असल में तुम दिखावा कर रहे हो रेचन का, अभिनय कर रहे हो; रेचन हो नहीं रहा है। जब भी तुम अनुभव करते हो कि रेचन हो नहीं रहा है और तुम्हें उसे जबरदस्ती करना पड़ रहा है, तो वह गिर ही चुका होता है।

विधि को बदलने के बारे में कैसे जानें? -

सदा स्मरण रखें, जिस विधि से भी तुम्हें आनंद मिलता है वह तुम्हारे भीतर गहरे उतर सकती है; केवल वही तुम्हारे भीतर गहरी उतर सकती है। इससे आनंद मिलने का अर्थ केवल इतना है कि यह तुम्हारे लिए बनी है। यह तुम्हारे साथ लयबद्ध है: विधि एवं तुम्हारे मध्य की सूक्ष् सहमति है।

ध्यान में चिकित्सा की क्या भूमिका है?

बुद्ध को अपने संन्यासियों के लिए मनोचिकित्सा की आवश्यकता कभी नहीं पड़ी; वे लोग भोले-भाले थे परंतु इन 25 शताब्दियों में, लोगों ने अपना भोलापन खो दिया है, वे बहुत पंडित हो गए हैं। अस्तित्व के साथ उनका नाता टूट गया है। धरती से उनके पांव उखड़ गये हैं।

क्या गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है ?

मार्गदर्शन अनिवार्य है, ऐसा हमें लगता है। लेकिन मार्गदर्शन सबीज हो सकता है और मार्गदर्शन निर्बीज हो सकता है। मार्गदर्शन ऐसा हो सकता है कि उससे सिर्फ तुम्हारे मन में विचार और कल्पनाएं और धारणाएं पकड़ जाएं। और मार्गदर्शन ऐसा हो सकता है कि तुम्हारे सब विचार और तुम्हारी सब धारणाएं तुमसे छिन जाएं और अलग हो जाएं। तो जो व्यक्ति कहता है, मैं मार्गदर्शन दूंगा, उससे बहुत डर है कि वह तुम्हें विचार पकड़ा दे। जो व्यक्ति कहता है, मैं कोई मार्गदर्शक नहीं हूं, उससे संभावना है कि वह तुम्हारे सब विचार छीन ले। जो कहता है, मैं तुम्हारा गुरु हूं, उसकी बहुत संभावना है कि वह तुम्हारे चित्त में बैठ जाए। जो कहता है

महेश योगी के ट्रांसेनडेंटल मेडिटेशन और मेरे ध्यान में समानता है या कोई फर्क है?

समानता बिलकुल नहीं है। फर्क ही नहीं है, विपरीतता है, बुनियादी भेद है। जिसे भावातीत ध्यान कहा जा रहा है वह साधारण मंत्र-योग है, नाम-जप है। अगर आप किसी भी शब्द का मन के भीतर जाप करते हैं तो तंद्रा पैदा होती है, हिप्नोसिस पैदा होती है, निद्रा पैदा होती है और आप गहरी नींद में खो जाते हैं। उससे बेहोशी आ सकती है, आती है। श्री महेश योगी के ध्यान की जो प्रक्रिया है वह ट्रैंक्वेलाइजर जैसी है, नींद लाने की दवा जैसी है।

ध्यान मेरी समस्याओं के समाधान के लिये क्या करेगा?

समस्यायें तुम्हारे चारों ओर हैं। तो यदि तुम किसी तरह एक समस्या से छुटकारा पा भी लो तो दूसरी पैदा हो जाएगी। और समस्याओं को पैदा होने से तुम रोक न सकोगे। समस्याएं पैदा होती ही रहेंगी जब तक तुममें साक्षी की गहन समझ न आ जाये। यही एक सुनहरी कुंजी है जो सदियों से पूर्व में हुई आंतरिक खोज में पायी गयी है: कि समस्या का समाधान खोजने की कोई आवश्यकता नहीं। तुम बस इसे देखो, और मात्र देखना ही काफी है; समस्या तिरोहित हो जाती है।
 

ओशो: द रिबैलियस स्पिरिट, #6

 

मन क्या है, और अ-मन क्या है?

हम जो भी करते हैं, वह मन का पोषण है। मन को हम बढ़ाते हैं, मजबूत करते हैं। हमारे अनुभव, हमारा ज्ञान, हमारा संग्रह, सब हमारे मन को मजबूत और शक्तिशाली करने के लिए है। बूढ़ा देखें, बूढ़ा आदमी कहता है, मुझे सत्तर साल का अनुभव है। मतलब?

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